मंगलवार, 30 सितंबर 2014

धोखा

जितनी खिलखिलाहट थी तेरे साथ में ।
उतना ही सन्नाटा हुआ तेरे बाद में ।
जिन्दगी में अँधेरे का दिया जला गयी ।
कभी रौशनी की किरण लायी थी साथ में ।
मुझे तो तमाम उम्र निभाना है ये रिश्ता ।
के थमा था उसका हाथ कभी मैंने हाथ में ।
 मैंने तो देखा है देता है अक्सर  धोखा ।
न जाने क्या है इस इश्क की जात में ।

शिवराज

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