शनिवार, 30 मई 2015

गिरफ़्तारी

इश्क़ में कैसी ये गिरफ़्तारी है 
जैसे दिल की कोई लाचारी है 

दूर जाने का मौका है फिर भी 
हमको क्यों ये जंज़ीर प्यारी है 

दिल की बात उसे कहने से पहले 
करनी उस के दिल से यारी है 

उसे भी थोडा करीब आना चाहिए 
क्या हर बात बस मेरी जिम्मेदारी है 

---शिवराज--------


मंगलवार, 26 मई 2015

वक़्त के तोते में सबकी जान है

कहीं मुस्कुराती सुबह है
कहीं भीनी शाम है ।
कुदरत की कलाकारी है
जिंदगी दूजा नाम है ।

कहीं खुशियों के मेले है
कई भीड़ में अकेले है ।
जिंदगी के सबक है
समझना अपना काम है ।

कहीं गदहा पहलवान है
कहीं पहलवान बेजान है
ताकत इंसान में कहाँ
वक़्त के तोते में सबकी जान है ××××××××××××××××××××××
सब को सुप्रभात
___शिवराज______

सोमवार, 18 मई 2015

शानबाग को सलाम

पूरे बयांलिस बरस 
तीन बाय छ के घर में 
जवानी से बुढ़ापे तक 
सांस सांस को तरस
लड़ी जिंदगी की जंग 
रही फिर भी सरस
दिखा दी नारी शक्ति
बरसाया शौर्य रस 
आज जब विलीन हुई 
कह गयी अब बस 
बस करो ये घिनौनापन 
वरना जाओगे तरस 
फिर कौन बरसायेगा 
तुम पर प्रेम रस 
रहेगा याद मुझे 
तेरा अदभुत् संघर्ष 
अरुणा रविन्द्रन शानबाग 
तुम तो हो प्रेरक 
जिन्दा रहोगी दिलों में 
बन के एक दीपक 
आज अंतिम पलो में 
सर तेरे चरणों में रख 
करता हूँ दंडवत प्रणाम 
तुझे सलाम तुझे सलाम 
----शिवराज--------
Picture courtesy Google

गुरुवार, 14 मई 2015

बड़ा दिल रखता हूँ


वैसे चाहे मैं कितना भी सबर रखता हूँ ।
चोरी चुपके मग़र उसकी ख़बर रखता हूँ ।

खामोश रहता हूँ मगर अंजान नहीं हूँ मैं।
अपने हों या पराए सब पे नज़र रखता हूँ ।

कोई मिले मुझसे तो अपनापन लगे उसे।
इसलिए मैं अपनी "मैं" को घर रखता हूँ ।

भगवान है ये बात मानता नहीं हूँ मैं ।
माँ बाप के कदमों में मगर सर रखता हूँ ।

ये बात मुझको पापा ने सिखाई थी कभी ।
आदमी छोटा हूँ बड़ा दिल मगर रखता हूँ ।

------शिवराज---------
मेरे पिता को समर्पित

रविवार, 3 मई 2015

कुछ बदले




इतना तो कर दे ए खुदा की मेरे दिन बदले ।
न मैं बदला न वो बदले न मेरे अरमां बदले ।

आता नहीं समझ ये फ़साना कभी मुझको ।

अकेले में मिलते है वो, तो कुछ बदले बदले ।

इतना न इम्तिहान ले के बदल जाएं हम ।

अब के बदले तो मुश्किल है, फिर बदले ।

न जाने क्यों उम्मीद अभी बाकी है आप से ।

कोशिश में मैं भी साथ हूँ कुछ फ़िज़ा बदले ।

|~|~|~शिवराज~|~|~|

शुक्रवार, 1 मई 2015

उदासी




यूं ही कभी भी चली आती है 
मेरे पास 
उदासी ।
अपना दोस्त समझकर 
और मैं 
उसका दिल नहीं तोड़ पता 

और फिर ........

कही ये मुझसे रूठी 
तो कौन आयेगा 
मेरे साथ वक़्त बिताने 
हाँ पसंद है 
मुझे भी
उदासी 
क्योकि साथ देती है 
मेरे गम में 
निस्वार्थ उदासी 
---शिवराज