वैसे चाहे मैं कितना भी सबर रखता हूँ ।
चोरी चुपके मग़र उसकी ख़बर रखता हूँ ।
खामोश रहता हूँ मगर अंजान नहीं हूँ मैं।
अपने हों या पराए सब पे नज़र रखता हूँ ।
कोई मिले मुझसे तो अपनापन लगे उसे।
इसलिए मैं अपनी "मैं" को घर रखता हूँ ।
भगवान है ये बात मानता नहीं हूँ मैं ।
माँ बाप के कदमों में मगर सर रखता हूँ ।
ये बात मुझको पापा ने सिखाई थी कभी ।
आदमी छोटा हूँ बड़ा दिल मगर रखता हूँ ।
------शिवराज---------
मेरे पिता को समर्पित
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