मंगलवार, 27 जनवरी 2015

जख्म्


मैंने जिंदगी में टूटते दिल के सारे वहम देखे हैं । 
यहाँ तो दुश्मन ही नहीं दोस्त भी जख्म देतें हैं ।

दर्द हद से गुज़र जाता है अक्सर उस लम्हा।
मासूमियत से वो जब न रोने की कसम देते हैं ।

मैं इरादा करता हूँ दूर जाने का, क्यूं तभी ।
पास आओ, मुस्कुरा कर मेरे सनम कहते हैं ।

यूं तो मिलते हैं कई लोग तसल्ली देने वाले ।
भूल जा, कह के बस पीठ पे थपकी देते हैं ।

बड़ी चाहत है, सपनों की, सूनी निगाहों को ।
अक्सर खुली आँखों से ही हम झपकी लेते हैं ।
~~~~~~शिवराज शर्मा~~~~~~~

कोई टिप्पणी नहीं: