मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

ख़ुशनुमा


जान लो मैं हर वक़्त खुशनुमा क्यों होता हूँ ।

अपने चेहरे को नयन के नीर से मैं धोता हूँ ।
__________________________________

हो गया प्रवाह पीड़ा का अब इतना अधीर । 

अक्सर अकेले में मैं गम का दरिया होता हूँ ।
____________________________________

सब कुछ पाकर भी क्यों ग़मज़दा है पूछा गया ।

क्या कहूँ तुमको मैं हर पल क्या क्या खोता हूँ ।
____________________________________

सुना है तेरी परवाह है इस ज़माने को राज़ ।

सुनी हुई बातों पे मैं अब भी क्यों खुश होता हूँ ।
____________________________________
शिवराज 

कोई टिप्पणी नहीं: