जान लो मैं हर वक़्त खुशनुमा क्यों होता हूँ ।
अपने चेहरे को नयन के नीर से मैं धोता हूँ ।
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हो गया प्रवाह पीड़ा का अब इतना अधीर ।
अक्सर अकेले में मैं गम का दरिया होता हूँ ।
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सब कुछ पाकर भी क्यों ग़मज़दा है पूछा गया ।
क्या कहूँ तुमको मैं हर पल क्या क्या खोता हूँ ।
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सुना है तेरी परवाह है इस ज़माने को राज़ ।
सुनी हुई बातों पे मैं अब भी क्यों खुश होता हूँ ।
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शिवराज
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